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बन सके, उतना बचाकर परोपकार करनेकी भावना प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। मुक्तिसेना ( साल्वेशन आर्मी ) तथा मिश्नरियोंका भी संन्याससे कोई सम्बन्ध नहीं है। उनका मुख्य कार्य सेवा है और इसीके द्वारा वे साधारण जनतामें अपने संस्कार डालते हैं ।
पारसी धर्म पारसी धर्मके अनुयायो गृहस्थ बेहदीन कहलाते हैं, धर्मगुरु दस्तूर और धर्मक्रिया करनेवाले मोवेद । दस्तूर और मोवेद भी गृहस्थोंकी तरह घरबार वाले होते हैं। दुनियाका त्याग करके संन्यास लेनेका उनमें कोई विधान नहीं है।
बौद्ध धर्म बाद्धधर्ममें संन्यासका महत्त्वपूर्ण स्थान है। जीवनमें एक बार भिक्षु बनना प्रत्येक बौद्ध धर्मानुयायी अपना कर्तव्य समझता था, किन्तु अब यह प्रथा शिथिल हो गई है । बौद्ध संन्यासमें एक विशेषता यह है कि भिक्खु ( भिक्षु) बननेके बाद यदि कोई व्यक्ति गृहस्थ बनना चाहे, तो सामाजिक या धार्मिक किसी भी दृष्टिसे बुरा नहीं समझा जाता। दुबारा गृहस्थ होनेपर वह अपनी संपत्तिका अधिकारी माना जाता है। विवाह आदि सामाजिक कार्यों में भी उसे किसी प्रकारकी अड़चन नहीं पड़ती। व्यक्ति अपनी इच्छानुसार जितने समयके लिये चाहे भिक्खु रह सकता है और फिर गृहस्थाश्रममें प्रवेश करके शादी वगैरह कर सकता है। इसलिए बौद्ध-दीक्षा अंगीकार करते समय व्यक्ति किसी जोखममें नहीं
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