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( ५ ) पड़ता। जिस प्रकार शिक्षाके लिए कुछ वर्ष विश्वविद्यालय या गुरुकुल में व्यतीत कर विद्यार्थी अपने घरेलू धन्धोंको सँभाल लेता है, उसी प्रकार धार्मिक शिक्षा तथा चारित्र सुधारके लिए कुछ दिन भिक्खु बनकर फिर गार्हस्थ्य अंगीकार किया जा सकता है। इसीलिए बौद्धधर्म में जीवनसुधारके लिए एक दीक्षा ग्रहण करनेका सभीके लिए विधान है। इसके बाद यदि कोई आजन्म भिक्खु रहना चाहे तो रह सकता है, नहीं तो गृहस्थ बन सकता है। भिक्षुके लिए भिक्षावृत्ति, कन्था घारण, यम, नियम आदिका पालन आदि बातें तात्त्विक दृष्टिसे प्रायः हिन्दू धर्मके समान ही हैं।
हिन्दू धर्म कर्मयोग तथा कर्मसंन्यासके विषयको लेकर हिन्दू धर्मग्रन्थों में विस्तृत चर्चा है। गीतामें संन्यासकी अपेक्षा कर्मयोगको विशेष माना है। हमें यहाँ पर संन्यास और उसके अधिकारीके बिषयमें कुछ कहना है। मनुस्मृतिमें लिखा है
बनेषु विहृत्यैवं तृतीय भागमायुषः । चतुर्थमायुषो भागं त्यक्त्वा संगान परिव्रजेत ॥
मनु. अ. ६, श्लो. ३३ मनुस्मृतिमें आयुके चार भाग किए गये हैं। पहले भागमें ब्रह्मचर्यका पालन करके विद्याध्ययन करना चाहिए। दूसरेमें गार्हस्थ्य जीवन बिताना चाहिए । तीसरे भागमें बनवास अर्थात् वानप्रस्थ रहकर चौथेमें संन्यास धारण करना चाहिये । यदि मनुष्यको पूर्ण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com