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( ७० ) समुद्रविजय और सागरविजय इन दोनों शिष्योंको साथ लेकर आपने बीकानेरकी तरफ विहार किया।
ग्रामोंमें विचरते हुए आप सोजत पधारे । सोजत में आपका एक सार्वजनिक व्याख्यान हुआ । इस व्याख्यानका वहांके अमलदार-वर्ग को भी लाभ मिला । यहांसे विहार करके अनेक स्थानोंपर धर्मोपदेश देते हुए आप मेड़तामें पधारे । मेड़ता एक प्राचीन शहर है। पहले यहां पर जैनोंके हजारों घर थे । यह भी सुना जाता है कि यहांपर चौरासी गच्छोंके ८४ उपाश्रयथे । अब तो यहांपर अनुमान १०० घर १४ मंदिर और एक उपाश्रय है।
यहांसे आप फलौदी पधारे। यहां श्री पार्श्वनाथ प्रभुका बड़ा प्राचीन और भव्य मंदिर है और एक विशाल जैन धर्मशाला भी है । आपके फलौदी पधारने पर बीकानेरके सेठ सुमेरमलजी सुराणा आदि ५०-६० श्रावक आपके दर्शनार्थ आये । व्याख्यान, पूजा और प्रभावनाकी खूब रौनक रही।
फलोदीसे विहार करके खजवाणादि ग्रामों में धर्मदेशना देते हुए नागोर पधारे-यहां पर भी बिकानेर से सुराणाजी आदि आये उनकी तरफसें पूजा-प्रभावनादि हुवे ।।
नागोर से चलकर आप देसनुकमें आये । बीकानेरके सुराणाजी प्रमुख कई सद्गृहस्थ यहांपर फिर आये । यहां से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com