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(६७) का दिग्दर्शन कराते हुए; उसको सुधारने के लिये गोड़वाड़ प्रान्त में एक विद्यालय स्थापन करने की आवश्यकता दिखाई । उस समय के आपके उपदेश का इतना प्रभाव पड़ा कि उसी समय ५०००० रुपयोंसे कुछ अधिक रकम लिखी गई । लोगों का इतना अधिक उत्साह देखकर गुरुदेव को सादड़ी में चतुर्मास करना पड़ा और आपको भी पालीसे वापिस सादड़ी आना पड़ा।
सादड़ी में आपने कयवन्ना और श्राद्धगुण विवरण का अनुवाद किया ।
" पदवी प्रदान"
आपका सं. १९७६ का चतुर्मास बाली में हुआ। आप के उपदेशसे वहांपर "नवयुवक मंडल" की स्थापना हुई, और मुनि श्री ललितविजयजी, मुनि श्री उमंगविजयजी तथा मुनि 'विद्याविजयजी को श्री भगवतीसूत्रका योगोद्वहन कराकर उनको मार्गशीर्ष शु. पंचमीके रोज़ बड़े समारोह पूर्वक गणी व पंन्यासपदवीसे विभूषित किया । • यहां इतना कहदेना औरभी जरूरी होगा कि मुनिश्री ललितविजयजी को गुरुमहाराजने अनेक बार आग्रह पूर्वक कहा कि तुम अनेक साधुओंसे बड़े हो, इसलिये पंन्यास पदवीके योग पूर्ण करलो । परन्तु उक्त मुनिश्रीजीके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com