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(६५) गुरुदेवके उपसर्ग की खबर ॥ विपदि धैर्वमथाभ्युदये क्षमा, सदसि वाकपटुतायुधिविक्रमः। यशसि चाभिरुचिर्व्यसनंश्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ।।
भा० " संकट में धैर्य, अभ्युदय में क्षमा, सभा में वाकूचातुर्य, युद्धमें बल; यश प्राप्त करने में रुचि, शास्त्रश्रवण का व्यसन; यह सब बातें महात्माओं को स्वभाव से ही होती है"।
यहांसे आपने जोधपुर की तर्फ विहार किया। वहांसे चार कोस के फासले पर एक छोटेसे ग्राममें पधारे। आहार कर ही चुके थे कि किसी व्यक्तिद्वारा यह सुना कि गुरु महाराज को रास्ते में आते हुए लुटेरोंने लूटलिया-आपके वस्त्र पुस्तक आदि सब कुछ छीन लिये । यह समाचार सुनते ही आप तुरंत विहार करके पुनः पालीमें पधारे । वहां पहुंचकर आपने गुरुदेव का कुशल समाचार मँगवाया । यहां के शा. चांदमलजी छाजेडादि आगेवान सद्गृहस्थ श्री गुरुदेवको सुखशाता पूछने के लिए विजापुर गये। मुनिराज श्री ललितविजयजी, तपस्वी गुणविजयजी और मुनि विचारविजयजी तो पाली में पधार गये किन्तु गुरुमहाराज तो प्रामानुग्राम विचरते हुए बाली में पधारे ।
-और
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