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(६४) गुरुदेवकी आज्ञा और सादड़ीसे विहार “ विना हि गुर्वादेशेन संपूर्णाः सिद्धयः कुतः "
सादड़ी में उपाध्याय श्री १०८ वीरविजयजी महाराज के स्वर्गवास का समाचार मिलते ही आपने देववन्दन किया.
और अहमदाबादसे अपने पूज्यगुरुदव, जोकि विहार करके इधरको आरहे थे, और बीकानेर पहुँचने का भाव था, का पत्र आपको मिला। उसमें गुरुमहाराजने आपको लिखा था कि तुम आगे बढ़ो, और हमभी आ रहे हैं। तदनुसार आपने सादड़ी से विहार करदिया, और नाडलाई, नाडोल और वरकाणातीर्थ की यात्रा करते हुए आप राणी पधारे । यहांसे चोचोड़ी, खांड, गुंदोचा आदि ग्रामोंमें धर्मोपदेश करते हुए आप पाली में पधारे । पाली नवलक्खा पार्श्वनाथजी का धाम कहा जाता है; यहांपर आप अनुमान १५ दिन ठहरे । यहांपर आपके धर्मोपदेश की खूब धूम मची रही, जनता की अधिक दिनों की बढ़ी हुई धर्मपिपासा को आपने अमृतोपदेशसे शान्त किया । ___इस अवसरपर पंजाब के ५०-६० श्रावक श्रावविकाओं को भी आपके दर्शन का लाभ मिला । पालीके श्रावकोंने भी उनकी खूब सेवा-भक्ति की । यतः ।
" साधूनां हि परोपकार करणे नोपाध्यपेक्षं मनः"
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