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(६३) घर तेरहपंथी श्रावकोंके हैं । ग्राममें एक जिनमंदिर भी है । यहांके हाकिमसाहिब आदि अधिकारी वर्गने वैष्णव धर्मानुयायी होते हुए भी आपका अच्छा स्वागत किया । आपको कुछदिन रहकर धर्मोपदेश करने की प्रार्थना की; तदनुसार आठ दिन आपका कचहरी घरके सामने ही लगातार धर्मोपदेश होता रहा । जनताने आपके धर्मोपदेशसे खूब लाभ उठाया। यहांपर इतना कहने में ज़राभी अतिशयोक्ति नहीं है कि इस प्रान्तमें आपके विहार करनेसे धर्मकी बड़ी प्रभावना हुई। समय के हेरफेरसे जैनसाधुओंका इधर बिचरना नहीं होता; यदि होता भी है तो बहुत कम; इसलिये लोगोंमें धर्म के संस्कार बहुत मलिन होगये हैं।
जिनमंदिरोंमें वीतराग प्रभुदेव की पूजाभक्ति करके अपने अन्तरात्मा में कुल विशेषता संपादनकी जातीथी, वे जिन मंदिर आज प्रायः उठावणे-किसीके मरनेपर तीसरे दिन मंदिर में जाकर दुकान आदि खोलने-केही लिये उपयोगमें आते हैं।
आप ऐसे अनेक ग्रामोमें विचरे, जहां कि वर्षोंसे लोगों को जैनसाधुओं के दर्शन नसीब नहीं हुए थे। आपके उपदेशसे इस प्रान्तमें धर्मकी खूब जागृति हुई । तदुक्तम् ।
अचिन्त्यं हि फलं सूते सद्यः सुकृत पादपः ।
यहांसे गडबोडादि होते हुए देसूरी, सुमेर, घाणेराव और मुंछाले महावीर प्रभु की यात्रा करते हुए आप सादड़ीमें पधारे।
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