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(६२) राणे बंधाई पाल" इत्यादि। यहां पर इस समय अनुमान १००
आज्ञापत्र महाराणा श्रीराजसिंह मेवाड़ के दशहजार ग्रामों के सरदार, मंत्री और पटेलों को आज्ञा देता है, सब अपने २ पद के अनुसार पडें ।
(१) प्राचीन काल से जैनियों के मंदिर और स्थानों को अधिकार मिला हुआ है, इस कारण कोई मनुष्य उनकी सीमा (हद) में जीव वध न करे, यह उनका पुराना हक है ।
(२) जो जीव नर हो या मादा, वध होनेके अभिप्राय से इनके स्थान से गुजरता है, वह अमर हो जाता है ( अर्थात् उसका जीव बच जाता है )
(३) राजद्रोही, लुटेरे और कारागृह से भागे हुए महा अपराधी को जो जैनियों के उपासरे में शरण ले-राजकर्मचारी नहीं पकडेंगे ।
(४) फसल में कूची [ मुठी ], कराना की मुठी, दान करी हुई भूमि धरती और अनेक नगरों में उनके बनाये हुए उपासरे कायम रहेंगे।
(५) यह फरमान यतिमान की प्रार्थना करने पर जारी किया गया है, जिसको १५ बीघे धान की भूमि के और २५ मलेटी के दान किये गये हैं । नीमच और निम्बके प्रत्येक परगने में भी हरएक जाति को इतनी ही पृथ्वी दी गई है अर्थात् तीनों परगनों में धानके कुल ४५ बीघे और मलेटी के ५ बीघे ।
इस फरमान के देखते ही पृथ्वी नापदी जाय और देदी जाय और कोई मनुष्य जातियों को दुःख नहीं दे, बल्कि उनके हकों की रक्षा करे । उस मनुष्य को धिक्कार है जो, उनके हकों को उलंघन करता है । हिन्दु को गो और मुसलमान को सूवर और मुदारी की कसम है।
(आज्ञा से) संवत् १७४८ महाशुदी ५ वी इस्वी० सन् १६८३ राजपूताने के वीर पृ. ६१६.
शाह दयाल ( मंत्री) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com