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(६१ ) करके दयालशाह मंत्रीने यह भव्य मंदिर बनवाया था। अभीतक उधर लोगोंमें कहावत है कि "शाह बंधायो देवलो
और उसी के बाद दयालशाह को आपने प्रधानपद पर नियुक्त किया। दयालशाह एक वीर पुरुष स्वामिभक्त व बडे चतुर विलक्षण धार्मिक पुरुष थे । कहते हैं कि राजसमुद्र के तालाब तथा नौ चौकियों का निर्माण इन्हीं की देखरेखमें हुवाथा । और इन्होंने-दयालशाहने भी पास ही एक पहाडपर श्री आदीश्वर भगवान की चौमुखी मूर्ति (चारोंतरफ चार ) स्थापन करा के श्वेतांबर जैन मंदिर का निर्माण कराया, जो आजदिन तक दयालशाह के किलेके नामसे विख्यात है, और मंदिर की चारो तरफ कोट बनवाया । लडाई के बुर्ज अभी तक विद्यमान हैं। इस मंदिर के पहिले नौ मंजिलें थीं जिसका कुल खर्चा बनानेमें ९९९९९९९ ) हुवा ।
उस वक्त की कविता भी चली आ रही हैजब था राणा राजसी, तब था शाह दयाल । अणां बंधायो देहरो, बणा बंधाइ पाल ।
राजपूताने के जैन वीर-पृ. १५६. कांकरोली स्टेशन के समीप में ही यह रमणीय स्थल है, लगभग २५ मीलकी दूरीखें इस गगनचुंबी मंदिर के दर्शन होते है, मेवाड के इस रमणीय तीर्थकी हरएक जैन को अपनी जिंदगी में एक वक्त अवश्य यात्रा करनी चाहिये। तदुपरांत " महात्मा टॉडसाहबने दयालशाह के हस्ताक्षरों के राणा राजसिंह के एक आज्ञापत्र को अपने अंग्रेजी राजस्थान जि. १ का अपेंडिक्स नं ६ पृ. ६८६ और ६८७ में अंकित किया है जिसका हिन्दी अनुवाद बा० बनारसीदासजी एम. ए. एल. एल. बी. एम. आर. ए. एस. कृत जैन इतिहास सीरिज नं. १ पृ
६६ से उद्धृत किया जाता है:Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com