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सिंहजी का एक पत्र आपको मिला; उसमें लिखा था कि करेड़ा तीर्थमें आप के पधारने से मुझे अजहद खुशी हुई । कृपा कर के आप यहां पर कुछ दिन रह कर जनता में अहिंसा के भावों का खूब प्रचार करें।
यहां से चलकर अनेक ग्रामोंमें विचरते और धर्मोपदेश देते हुए आप राजनगर में पधारे। यहां पहाड़ के ऊपर एक तीन मंजला विशाल जिनमंदिर है। पास में ही १२ मीलका लम्बा चौड़ा सरोवर है । कहते हैं कि उदयपुर के महाराणा राजसिंहजीने एक करोड़ रुपया खर्च करके इस बारह मीलके तालाबकी पाल बन्धाइ और एक कम एक करोड़ रुपया खर्च
मेवाड के इतिहास में प्रसिद्ध जैन वीरोंमे से संघवी दयालशाह मंत्री भी एक नामांकित कर्मवीर -धर्मवीर - जैनवीर पुरुष हुवे हैं । आपने अनेक युद्ध कर के मेवाड भूमि की रक्षा की है ।
इसी तरह से आपने पवित्र जैन धर्म संबंधी अनेक कार्य किये । जीसमें से एक खास उल्लेखनीय कार्य यह है ।
महाराणा राजसिंहजीने उदयपुर से ४० मीलकी दुरी पर कांकरोली और राजनगर के समीप में गोमती नदी को रोक कर एक करोड रुपये लगा कर एक बडा भारी बंध बनवाया है जिस का नाम राजसमुद्र है ।
जिस वक्त राजसमुद्र का निर्माण आरंभ हुआ, उस वक्त नींव में का पानी न रुकने से किसी ज्योतिषी के कथनानुसार संघवी दयाल - शाहकी पतिव्रता स्त्री गौरादेवी को उनके हाथसें समुद्रकी परिक्रमा
कच्चे: सूतसे लगवा इन्हीं सतीके हाथसें नींव का पत्थर जमवाया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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