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( ५४ ) यहां पर बंबई निवासी शेठ चांपसी के सुपुत्र श्रीयुत लालचंद का शांतमूर्ति मुनिराज १०८ श्री हंसविजयजी महाराज की अध्यक्षतामें गुरुमहाराज के हाथसे दीक्षा-संस्कार हुआ और रविविजय नाम रखा गया, तथा वह आपके शिष्य बनाये गये। यह दीक्षा महोत्सव वि. सं. १९७५ के वैशाख शुक्ला षष्ठीके दिन हुआ।
यहांसे विहार कर के श्री पानसर आदि तीर्थों की यात्रा कर के पुनः आप गुरुदेव के चरणोंमें अहमदाबाद पधारे ।
उदयपुरमें चतुर्मास "कल्पद्रुमः कल्पितमेव सूते, सा कामधुक कामितमेव दोग्धि। चिन्तामणिश्चिन्तितमेव दत्ते सतां हि संगः सकलं प्रसूते"
भावार्थ-कल्पवृक्ष, कामधेनु गाय, और चिन्तामणि रत्न, मांगी हुई चीजो को ही देते हैं, परंतु सत्पुरुषोंका संग सब कुछ देता है।
श्रीसंघकी अधिक विनती और गुरुमहाराजकी आज्ञासे आपने उदयपुरकी तरफ़ विहार किया । मुनि श्री उमंगविजयजी, मित्रविजयजी, समुद्रविजयजी, सागरविजयजी और रविविजयजी आदि पांच साधु आपके साथमें गये । रास्ते में हिम्मतनगर, अहमदगढ, प्रांतिज, और ईडरगढ आदि स्थानों में
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