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तथा सहस्रों की संख्या में स्त्री-पुरुषों का समुदाय था। यह प्रवेश-महोत्सव अपनी शान का एक ही था। गुरुदेव और प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी महाराज का चतुर्मास तो बंबई में हुआ और वहाँ के श्रावक समुदाय की विशेष प्रार्थना और गुरुमहाराजकी आज्ञासे आपका चतुर्मास कोट ( बंबई ) में हुआ। चतुर्मासमें श्री महावीर जैन विद्यालयकी बिल्डिंगके लिये फंड एकत्रित होने लमा तो आपके सदुपदेशसे कोटके श्रीसंघकी तर्फसे २५००० रु. दिये गये।
इसके सिवाय इस चतुर्मासमें सबसे अधिक श्रेयका काम आपके हाथसे यह हुआ कि यहांपर मांगरोल निवासी श्रावक वर्गकी आपसमें चिरकालकी पड़ी हुई धड़ाबन्दी दूर हो गई, और आपके सदुपदेशने सबको एक ही प्रेम सूत्र में बांध दिया ।
तदुक्तम्
किमत्र चित्रं यत्संतः परानुग्रहतत्पराः । नहि स्वदेहशैत्याय जायन्ते चन्दनद्रुमाः ॥
बंबईसे बिहार बहता पानी निर्मला, बँधा सो गंदा होय । साधु तो रमता भला, दाग न लागे कोय ॥१॥
. चतुर्मास की समाप्ति के अनंतर अपने समुद्रविजय और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com