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( ५१ ) पंचतीर्थीकी यात्रा कर के महुवा, दाठा, और तलाजा आदि तीर्थोकी यात्रा करते हुए गुरुदेव के साथ आपश्री सिद्धाचलजीमें पधारे । इस तीर्थराज की यात्रा कर के शिहोर, भावनगर आदि नगरों में होते हुए वलानगरमें पधारे । यहां पर गुरु महाराजकी आज्ञासे देवश्रीजी की शिष्या साध्वी चरणश्री, चित्तश्री और चंपकरी को योगोद्वहन कराकर बड़ी दीक्षा दी । यहांसे विहार करके अनेक गाँवोंमें धर्मोपदेश देते हुए आप खंभातमें पधारे ।यह बड़ाही प्राचीन जैनस्थान है। इसमें श्री स्तंभन पार्श्वनाथजी की अतिप्राचीन और नितान्त प्रभावशाली प्रतिमा है। यहां पर रात्रिके समय भगवान् श्री महावीर स्वामीकी जयन्तीका उत्सव होनेवाला था। इसके लिये आपने एक बड़ा ही सुन्दर निबन्ध भगवान् महावीरस्वामी के जीवनपर लिख कर दिया, जो कि मास्टर दीपचंदजीने सभामें पढ़कर सुनाया था। श्रोतावर्ग पर उसका बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा था।
यहांसे विहार करके बड़ौदा और सूरत आदि नगरों तथा ग्रामोंमें विचरते हुए गुरुदेव और पूज्यप्रवर्तक श्री १०८ कान्तिविजयनी महाराज के साथ २ आप भारतके सुप्रसिद्ध नगर बंबई में पधारे ।
इस समय के प्रवेश महोत्सव का ठाठ कुछ निराला ही था। इस प्रवेशमें ३५ बैंडबाजे, सैंकड़ों मोटर और गाडियाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com