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( ५० ) के इतिहासमें एक खास स्थान रखता है । यहांपर इतना स्मरण रखना चाहिये कि ऊपर जिन दो धार्मिक संस्थाओं के जन्म का ज़िक्र आया है उनकी स्थापना पूज्यगुरुदेव के करकमलों से हुई। साथ ही साथ "श्री आत्मानंद जैन औषधालय" (श्रीयुत शेठ गुलाबचंदजी कल्याणजी खुशाल के स्मरणार्थ) का भी उद्घाटन हुआ । इस कार्य में उक्त शेठजी की तरफ से तीस हजार, शेठ सुंदरजी कल्याणजी खुशाल की मातुश्री की तरफ से पांच हजार, और अन्याअन्य सद्गृहस्थों की तरफ से पचीस हजार, सहायतार्थे दिये गये।
इस समय यह औषधालय उन्नति पर है। जैन, अजैन सब लाभ ले रहे हैं।
पाठकगण ! जैन धर्मकी उन्नति एवं जैन समाज की भलाई के लिए हमारे चरित्रनायक किस कदर प्रयत्न करते रहे हैं ? क्या हमारे अन्य जैनबंधु भी इस और लक्ष्य देवेंगे ?
वहां से उनेकी* पंचतीर्थी का संघ निकाला गया।
* उना, देलवाडा, अजारा, दिवबंदर और कोडीनार यह पंचतीर्थी कही जाती है, प्राचीन समय में कोडीनारमें जैनों की वस्ती वहुत थी, जैन मंदिर भी थे. ___बावीसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवानकी अधिष्ठाता अंबिकादेवी यहां बिराजमान थी. ___शोक है कि इस समय, इस नगरमें जैनों का और जैन मंदिरो
का नामनिशान भी नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com