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(४८) यहांपर सूरतकी बाई श्रीमती सरस्वती बहनने आपके पास बारह व्रतोंको ग्रहण किया और प्रभावना की ।
वेरावलमें चतुर्मास “ आत्मार्थ जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः । परं परोपकारार्थ यो जीवति स जीवति" ॥
भा० " संसारमें अपने स्वार्थ के लिए कौन नहीं जीता है ? । परंतु परोपकारके लिए जो जीता है, वही जीता है,"।
गुरुमहाराजको किसी कारणवश वापिस जूनागढ़ जाना पड़ा, इस लिये आप भी जूनागढ़ लौट आये । श्री संघ वेरावलका विशेष आग्रह देखकर गुरुमहाराजने आपको वहांपर चतुर्मास करनेकी आज्ञा दी और मुनि श्री विद्याविजय, विचारविजय और समुद्रविजयजीको इनके साथ भेजा । वेरावलके श्री संघने आपका खूब स्वागत किया । चतुर्मासमें मुनि विद्याविजयजीको महानिशीथ और विचारविजयजीको कल्पसूत्रके योगोंका उद्वहन कराया, चतुर्मासके दिनोंमें धार्मिक कृत्योंकी अच्छी प्रभावना हुई । आपके सदुपदेशसे यहांपर श्री आत्मानंद जैन लायब्रेरी, श्री आत्मानन्द जैन कन्या पाठशाला इन दो उपयोगी संस्थाओंको जन्म मिला। इस प्रकार आपका १९७३ का चतुर्मास वेरावलमें सम्पन्न हुआ। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com