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श्रीयुत नन्दरामजी आदि चार सज्जन उनकी सेवामें उपस्थित हो कर उनका आज्ञा-पत्र लाने के लिये तैयार हुए । प्रथम वे लोग बड़नगरमें पहुंचे । समस्त श्री संघको एकत्रित करके उन्होंने अपना अभिप्राय प्रगट किया । यह सुन कर सब चकित से रह गये। युवक वर्ग तो आपेसे बाहिर होने लगा क्योंकि उनकी की हुई मेहनत पर पानी फिर रहा था । २५ वर्षों के बाद यहां पर एक योग्य महात्माका चतुर्मास होनेवाला था । धार्मिक कृत्यों के लिये मनोनीत तैयारियां हो चुकी थीं, इस लिये बड़नगर के बदले किसी दूसरे स्थान में आपका चतुर्मास होना इन्हें असह्य था। परन्तु कुछ दीर्घदर्शी वृद्ध पुरुष भी बीचमें थे, उन्होंने सोचा कि अब क्या किया जाये; बदनावरमें भी यहांकी अपेक्षा कम लाभ नहीं, एक अच्छे क्षेत्रका सुधार होता है जो कि नितान्त आवश्यक है । इधर हमारे सब मनोरथ विफल होते हैं और युवक वर्ग को संभालना भी कठिन है, इत्यादि सब बातों का बिचार करते हुए, उनमें से श्रीयुत नन्दरामजी बरवोटा [जो कि एक बड़े दाना ओर अनुभवी पुरुष हैं ] ने बदनावर के इन सज्जनों को एकान्तमें बुलाकर कहा कि आप शीघ्र ही सूरतमें पहुंचिये, वहांसे गुरुमहाराज श्री की आज्ञा ले आइये; फिर सब कुछ ठीक हो जायगा।
यह सुनते ही उक्त चारों सज्जन गुरुमहाराज के पास सूरत पहुँचे; उनकी सेवामें अपना सभी अभिप्राय प्रगट किया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com