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( ४२ ) र्मास तो मैं बड़नगरमें ही करूंगा। यह सुनकर लोगों को बड़ी निराशा हुई । इस पर शा नंदराम चोपड़ा, नंदरामजी लोढ़ा श्रीयुत रामलाल और ऋषभदासजी आदि मुख्य लोगोंने मिल कर विचार किया कि चतुर्मास तो महाराजश्री का यहीं पर कराना चाहिये, क्योंकि हमने तो आजतक संवेगी साधुओं का यहां पर चतुर्मास होते नहीं देखा; और यहां के वृद्ध पुरुष भी यही कहते हैं कि किसी योग्य संवेगी साधुका बहुत वर्षों से यहांपर चतुर्मास नहीं हुआ । अस्तु, एक दफा फिर जोर लगाना चाहिये। तदनुसार सबने मिलकर फिर ज़ोर लगाया। व्याख्यानमें बड़े विनीत भावसे प्रार्थना की गई। जब इसपर भी आपने अपनी लाचारी प्रगट की, तब वहां पर खड़े सब श्रावक-श्राविका वर्ग के नेत्रोंसे अश्रु-धारा बहने लगी । यह देख कर आपका स्वाभाविक दयालु-हृदय और भी अधिक पसीज उठा, आपने कहा कि आप लोग इतने उदास न होवें । यदि बड़नगर के श्री संघकी अनुमति और गुरुमहाराजकी आज्ञा मुझे मिल जावे तो मैं बड़े आनंदसे यहां पर चतुर्मास रहने को तैयार हूँ।
आपके इन वचनों से लोगों के दिलों को कुछ आश्वासन मिला । यतः " केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना ह्युत्तमेषु”।
उस समय गुरु महाराज श्री १०८ विजयवल्लभसूरीजी महाराज सूरतमें विराजमान थे । बदनावर श्री संघमें से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com