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उस समय जैनेतर समुदाय के अतिरिक्त जैन धर्म के दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी और तेरहपंथी आदि प्रायः सभी आम्नाय के लोग उपस्थित थे। इनमें से एक सज्जनने उठ कर कहा कि मैंने तो अपनी आयुमें यह मनोहर दृश्य आज ही देखा है। मैं अपने अनुभवसे कह सकता हूँ कि मेरे सिवाय यहां पर बैठे हुए कई वृद्ध पुरुषों को भी ऐसा अवसर प्रायः आज ही देखने में आया होगा। जैन इतिहास में आज का दिन सुवर्णाक्षरोंसे लिखने योग्य है । तात्पर्य यह है कि आपके पधारनेसे इन्दौर शहर में धर्मकी खूब प्रभावना हुई । आपके उपदेश से वहांपर एक संगीत मंडलीकी स्थापना भी हुई।
'बड़नगरके बदले बदनावरमें चतुर्मास'
इन्दौर से विहार करके आप श्रीमक्षीतीर्थकी यात्रा तथा उज्जैन में श्री अवन्तीपार्श्वनाथके दर्शन करते हुए, बड़नगरमें पधारे । यहांपर सेठ मानाजी कस्तूरचंदजीने श्री नवपदजीका उद्यापन किया। इस अवसरपर रतलाम और इन्दौरसे भी अनेक सजन पधारे । इन्दौर श्री संघने आपको इन्दौर में चतुर्मास करने की प्रार्थनाकी, परन्तु बड़नगरके श्रीसंघका विशेष आग्रह देखकर इन्दौरवालोंको निराश होना पड़ा । और आपका चतुर्मास बड़नगरमें होना निश्चित हो गया ।
चतुर्मासके निश्चित होनेपर बड़नगरके श्री संघ और खास कर युवक मंडलमें बड़ा उत्साह बढ़ा ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com