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( ३७ ) गया । आप खरतर गच्छ के उपाश्रयमें ठहरे । यहां पर किसी कारण वश खरतर और तपगच्छ के अनुयायियोंमें बहुत समयसे कुछ वैमनस्य बढ़ रहाथा । वे आपस में मिलकर कोई धार्मिक कार्य नहीं करते थे। परन्तु आपके प्रभावशाली मार्मिक उपदेशोंने वहां जादू का काम किया। वे सब आपसमें मिल गये और मिलकर धर्मकार्य करने लगे।
___“मिलाप का अपूर्व दृश्य" उपाश्रय के सामने स्थानकवासी जैन बन्धुओं का स्थानक था । उसमें उक्त संप्रदाय के पूज्य प्रसन्नचन्द्रजी ठहरे हुए थे। आपकी शोभा सुन कर प्रसन्नचंद्रजीने अपने श्रावकों द्वारा दो पहरके वक्त आपको व्याख्यान के लिये स्थानक में आमंत्रित किया । आपने वहां जा कर एक बड़ा ही सारगर्भित व्याख्यान दिया। उसमें आपने साम्प्रदायिक व्यामोहसे बढ़े हुए पारस्परिक विरोध को दूर करने के लिये बड़ी ही मार्मिक भाषामें अपील की । श्रोताओं पर उसका बड़ा प्रभाव पड़ा । इसके बाद पूज्य प्रसन्नचन्द्रजीने एक सार्वजनिक व्याख्यान का आयोजन किया । उसमें आपने बड़ी ही स्पष्ट और सुन्दर भाषामें जैन दर्शन के महत्व को जनता के सामने रखा। जैनेतर समुदाय पर उसका बड़ाही गहरा असर पड़ा।
श्रीयुत प्रसन्नचन्द्रजी और आप, दोनों एक ही पाट पर विराजमान थे। इस समय का दृश्य निःसंदेह देखने योग्य था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com