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( ३५ ) यहांपर आपने धर्मोपदेश दिया। रात्रिमें वहांके कईएक लोगोंने आपसे देवपूजा और स्त्री-मोक्षके विषयमें प्रश्न पूछे । आपने उनका यथार्थ समाधान किया।
वहांसे चल कर आप "*मांडवगढ़" पधारे । पूजा, साधर्मिकवात्सल्य, प्रभावना और धर्मोपदेशका लोगोंको बहुत लाभ मिला । मांडवगढ़ किसी ज़माने में बड़ा वैभवशाली नगर था । पेथड़कुमार, मंत्री संग्राम सोनी आदि बड़े २ धनाढ्य पुरुष इसी नगर में हो गुजरे हैं । इस समय तो मांडवगढ़के गगनचुम्बी महलोंके खंडरात ही उसकी वैभव स्मृतिके अवशिष्ठ चिन्ह दिखाई देते हैं।
"इंदौरकी तर्फ विहार" "कीड़ा जरासा और वह पत्थर में घर करे,
इनसान क्या न जो दिले दिलबरमें घर करे। (जौक)
मांडवगढ से विहार करके दीठान होते हुए आप महु ग्राममें पहुँचे । इस ग्राममें इस समय कुल १०-१२ घर जैनोंके हैं। और वे भी जैन साधुओं के न विचरने से अपनी प्राचीन धार्मिक मर्यादा को भूल गये हैं। आपके
*इस नगरके विषयमें कहते हैं कि यहांपर एक लाखके करीब जैनोंकी बसती थी। वे सबके सब लक्षाधिपति थे। उनमें धर्म और जातिप्रेम इतना बढ़ा हुआ था कि कोई निर्धन जैन वहांपर आता था तो हरएक मनुष्य अपने पाससे एक २ रुपया और एक २ ईंट देकर उसको अपने जैसा बना लेते थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com