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वहां पर भगवान् श्री ऋषभदेवका बड़ा दिव्य मंदिर है । उसपर ध्वजा - दंड चढ़ाने के समय आपका उत्तम उपदेश हुआ । इस महोत्सव के वक्त वहांके स्वर्गवासी नरेश भी पधारे थे । वे जैनधर्मके अनुरागी और श्री ऋषभदेव पर विशेष श्रद्धा रखते थे । उक्त मंदिर के लिये उनकी तर्फसे कुछ जागीर भी दी हुई है । न्यायाम्भोनिधि श्रीमद्विजयानंद सूरिजी महाराज की जयंती धूमधाम से मनाई गयी । वहांसे विहार करके आप वापिस रतलाम में पधारे । आपका सं. १९७१ का चातुर्मास वहीं पर हुआ । आपने इस चातुर्मास में पं. श्री संपत्विजयजी महाराजके पास श्री भगवती सूत्रके योगोद्वहन किये |
चातुर्मास के समाप्त होते ही श्री हंसविजयजी महाराजकी अध्यक्षता में पंन्यासश्री संपद्विजयजी महाराज के हाथसे आपको " गणी " की उपाधि प्रदान की गई । और उन्हींके हाथसे माघशुक्ला पंचमी [सं. १९७१ ] के दिन सम्मान पूर्वक हजारों मनुष्योंकी मेदनी में बड़े समारोहके साथ आपको पन्यास पदवीसे समलंकृत किया गया । तबसे आप "पन्यास श्री सोहनविजयजी गणी ” के नामसे ख्यातिमें आये । यतः " गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिंगं न च वयः ।
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" श्री समिलिया तीर्थकी यात्रा.
रतलाम से विहारकरके धमणोद, समिलिया तीर्थकी
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