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"बंबईमें गमन" अहमदाबादसे विहारकर बड़ौदा, सूरत आदि नगरोंमें धर्म-प्रचार करते हुए, आप अपने पूज्य गुरुदेवके साथ बंबईमें पधारे। यहांपर श्रीमती सरस्वती बाईकी तर्फसे जो उपधान तप आदिका अनुष्ठान हुआ, उसका संपादन-विधिविधान आपही कराते रहे।
बंबईमें सं. १९७० का चातुर्मास गुरुमहाराजके साथ करनेसे आपके अनुभव और अभ्यास में विशेष उन्नति हुई। जैसे कहाभी है कि "सत्संगतिः कथय किन्न करोति पुंसाम्"।
____ "गणि और पन्यास पदवी" "वंद्यः स पुंसां त्रिदशाभिनंद्यः कारुण्यपुण्योपचयक्रियाभिः, संसारसारत्वमुपैति यस्य परोपकाराभरणं शरीरम्"।
भा० दयादि पुण्यकार्यों करके, संसार का सारभूत परोपकारसे जिसका शरीर पुष्ट होता है, वही " आत्मा" मनुष्योंसें वंदनीय एवं देवताओंसे अभिनंदनीय होता है"
पूज्य गुरुदेव की आज्ञासे आपने बंबईसे मालवे की और बिहार किया। रास्तेमें धर्म प्रचार करते हुए आप रतलाम शहरमें विराजमान मुनिराज श्री हंसविजयजी महाराज और पं. श्री संपतविजयजी महाराज के पास पहुँचे । कुछ दिन के बाद श्री संघ सेलाणा की विशेष विनति और उक्त मुनि
राजाओं की आज्ञासे आप सेलाणा नगरमें पधारे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com