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(३१) विद्याभ्यास करनेके साथ २ यहांपर चातुर्मासिक तपका भी संपादन किया । इसके अतिरिक्त मुनिश्री उमंगविजयजी श्रीविबुधविजयजी, श्रीविद्याविजयजी, श्रीविचारविजयजी, श्रीमित्रविजयजी. श्रीकपरविजयजी, और समद्रविजयजी आदि साधुओंको श्रीमहानिशीथ, कल्पसूत्र, आचारांग, और उत्तराध्ययन आदि सूत्रोंके योगोद्वहन कराये। " श्रीसिद्धाचलयात्रा और शिष्यलाभ”
डभोईका चातुर्मास समाप्त होनेके बाद, गुरु महाराजसे आज्ञा लेकर अपने दोनों शिष्यों [ मित्रविजय और समुद्रविजयजी ] के साथ श्री सिद्धाचलजीकी यात्राके लिये रवाना हुए। वहांश्री तीर्थराजकी यात्राके साथ आपको एक और योग्य शिष्यका लाभ हुआ । बड़ौदे के ( पालीमारवाडके ) शेठ सोभागचंदजीके सुपुत्र श्रीयुत पुखराजजी [जोकि समुद्रविजयजीके गृहस्थाश्रमके बड़े भाई थे] ने आपके पास दीक्षा ग्रहण की; और "सागरविजय" नामसे अलंकृत हुए। यह दीक्षा सं. १९६८ फाल्गुन शु. द्वितीया को हुई । वहाँसे आपने अहमदाबाद को विहार किया। यहां पर शान्तमूर्ति मुनिश्री हंसविजयजी महाराजके शिप्यरत्न पन्यासश्री संपत विजयजी के हाथसे सागरविजयजीको बड़ी दीक्षा दिलाई गई। इस दीक्षाका संपादन वैशाख कृष्णा तृतीयाको हुआ ।
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