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कि दीक्षा महोत्सव का तमाम खर्च सुखराजजी के ज्येष्ठ भ्राता शा पुखराजजी वागरेचा मुताने अपनी तरफसे किया था । __ "मुनिसमुद्रविजयजी की बड़ी दीक्षा"
श्रीगुरु महाराजकी आज्ञासे सूरत से मुनि श्री मोतीविजयजी के साथ आपने भड़ौच की तर्फ को विहार किया।
और समुद्रविजयजी को बड़ी दीक्षा देनेके निमित्त मुनिराज श्री मोतीविजयजी महाराज से योग प्रारंभ करादिया और भड़ौचमें विराजमान आचार्य श्री विजयसिद्धिसूरिजी महाराज के हस्तकमलोंसे समुद्रविजयजी की फाल्गुन शुक्ला पंचमी के दिन बड़ी दीक्षा का संपादन हुआ। भडौच से विहार करके आप मियांगांव में श्री गुरुदेव की सेवामें पधारे।
श्रीगुरुदेवकी आज्ञाके मुताबिक कुछ साधुओं को साथमें लेकर उनकी दवाई करानेके लिए आप बडोदे पधारे ।
वहाँ देसी वैद्योंकी दवाइसे आराम होजाने पर वापस उन साधु महात्माओंको श्री गुरुमहाराजकी सेवामें छोडकर आप भडौच पधारे। ___ श्रीगुरुदेवकी आज्ञासे सं० १९६८ का चातुर्मास भडौचमें आचार्यश्री विजयसिद्धिसूरिजी महाराजकी सेवामें रहकर समाप्त किया।
उन्हीं के पास श्रीमहानिशीथ आदि सूत्रों के योगोंका
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