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(२८) चातुर्मास के अनन्तर शेठ खीमचंद दीपचंदजी [गुरुमहाराज के गृहस्थाश्रमके ज्येष्ठ सहोदर भ्राता] ने कावी गन्धार तीर्थ के लिये संघ निकाला, उसमें गुरु महाराज के साथ आप भी शामिल हुए । उक्त तीर्थ स्थानकी यात्रा करके भड़ौचमें "मुनिसुव्रत स्वामी" के दर्शन किये । वहाँसे विहार करके श्रीझगड़ियाजी तीर्थकी यात्रा करते हुए गुरु महाराज के साथ ही साथ सूरत में पधारे । यहां आपको प्रवर्तक श्री १०८ श्रीकान्तिविजयजी महाराज, तथा शांतमूर्ति श्रीहंसविजयजी महाराज आदि अनुमान ४० मुनिराजाओं के दर्शनों का लाभ हुआ।
“शिष्यवृद्धि”
यहां पर आपको एक और शिष्यरत्न की प्राप्ति हुई। बड़ौदा-पाली (मारवाड़) निवासी श्रीमान शेठ सोभागचन्द्रजी वागरेचा मुता के सुपुत्र शा. सुखराजजीने आपके पास कुछ समय रहकर धार्मिक ज्ञान प्राप्त करते हुए अन्तमें आपके ही पास दीक्षा ग्रहण करली । यह दीक्षा विक्रम सं० १९६७ की फाल्गुन कृष्णा षष्ठी रविवार को हुई। उक्त मुनि महानुभावका नाम मुनि समुद्रविजय रक्खा गया । दीक्षाके समय, अन्य समारोहके अतरिक्त मुनि पुंगव प्रवर्तक श्री १०८ कान्तिविजयजी महाराज आदि पचास मुनिराज के लगभग विद्यमान थे। यहां इतना उल्लेख करना अनुचित न होगा
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