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(२४) और काटता है, तथा सिंह बाणकी तर्फ न देखता हुआ बाणके फेंकने वालेकी तर्फ क्रोधकी दृष्टि डालता है। ____ यह ही मिसाल ज्ञानी-अज्ञानी की है। ज्ञानी दुःख सुख के आने पर उसका कारण शुभाशुभ कर्म है यह मानकर उसके निवारणका उपाय करता है, और अज्ञानी अन्धकारमें स्तंभके साथ सिर टकरानेसे स्तंभ पर क्रोध करता है। मनुष्य मात्र को अपने किये शुभाशुभ कर्मों पर निर्भर रहना चाहिये और सुख दुःखमें समान वृत्ति रखनी चाहिये। ___ नरकोंमें ५६८९९५८४ रोगों को जीव भोगता ही है। और हम भी भोग आये हैं। मनुष्य की आयु कितनी और नरकके मुकाबले में वह अनन्त सुखी है । मनुष्यको हरएक दशामें संतुष्ट रह कर जीवन बिताना चाहिये । यतः__"न संतोषात् परं सौख्यं मुक्तिर्नोपशमं विना" इस प्रकार बड़े गुरु भाई के उपदेश-वचनों को सुनकर चरित्र नायक उस असह्य वेदना को भी समतासे भोग लेते । मुनिश्री ललितविजयजी दिनभर उनके आहार-पानी, औषध-भेषज, वस्त्र-प्रक्षालन आदिमें समय गुजारते हुएभी कभी मनमें ग्लानि नहीं लाते थे।
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