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" समुद्र के पार की तरह जब तक एक दुःख का अंत आया नहीं इतने में दूसरा दुःख आ खड़ा हुआ-क्यों कि छिद्रोंमें अनर्थ बहुत होते हैं"
__मुनिराज श्री सोहनविजयजी इस प्रस्तुत दुःखसे मुक्त हुए ही थे, कुच्छ सुखका श्वास आने ही लगा था कि इतने ही में घोर व्याधि का संक्रमण हो गया। बात ऐसी बनी कि मुनिराज की तपस्या का पारणा था । स्वर्गस्थ श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरजी महाराज फरमाया करते थे कि साधु को पारणे के दिन दूध और दही दोनों एक दिन न लेने चाहियें। ऐसी ही घटना का उदाहरण आज बना । मुनिराज ने प्रातःकाल पारणे में दूध लिया और सायंकाल के आहार (भोजन) में श्रीखंड का सेवन किया; उसने अपना चमत्कार बड़ी बुरी रीतिसे दिखाया।
मुनिराज के शरीर में वात का प्राबल्य था-पारणे का दिन था, चौमासे के दिन थे, रात्रीको प्रतिक्रमण किया। सब मुनिराज नित्य की तरह अपने२ सोनेके कमरों के बाहर बैठकर स्वाध्याय कर रहे थे। चरित्र नायक मुनिराज कमरे के अन्दर स्वाध्याय कर रहे थे। उनके शरीरमें एकदम असह्य पीड़ा उठी, उन्होंने चिल्लाकर “ मुनि श्रीललितविजयजी महाराज साहेब" एसी आवाज़ की । मुनि श्रीललितविजयजी भी स्वाध्यायमें लगे हुए थे। अनेक मुनिराज ऊंचे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com