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(२०) राजने कहा " घोघावाली धर्मशाला में जाकर तुम मुनि ललितविजयजी को कहो कि साधु मिल गया है। तुम कपड़े लेकर आओ”। मुनि ललितविजयजी उसी वक्त दौड़े आये। अपने प्यारे भाई को देख कर रो कर गले लगाया और प्रेम से स्थान पर लाये।
राज्य को इस बात का पता लगा। तब उन्होंने कितने ही शंकास्पद मनुष्यों को पकड़ कर मुनिराज के सामने हाजिर किया, परन्तु क्षमासागर मुनिराजने किसीका नाम तक नहीं लिया । सत्य है-"क्षमा वीरस्य भूषणम्" ___इस पैशाचिक कृत्य से वहां के लोगों में बड़ा जोश फैला
और पंडों के प्रति सभ्य समाज का वैमनस्य हो गया । अन्तमें परस्पर इतनी प्रतिस्पर्धा बढ़ गई कि उसका निपटारा होना दुष्कर सा जान पड़ा । परन्तु शांतमूर्ति मुनि श्री हंसविजयजी महाराजने लोगों को समझा कर शांत किया ।
दूसरा उपसर्ग एकस्य दुःखस्य न यावदन्तं,
गच्छाम्यहं पारमिवार्णवस्य । तावद्वितीयं समुपस्थितं मे, ____ छिद्रेष्वना बहुलीभवन्ति ॥
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