________________
(१६) दिवस की यादमनाते हैं अर्थात् उस रोज अनोजा (बाजार बंद) रखते हैं एवं गृहकार्योंको कमकरके अधिक समय धर्मके आराधनमें व्यतीत करते हैं ।
पूज्यपाद गुरुवर्य श्री विजयवल्लभसूरिजी महाराज के नामका वासक्षेप प्राप्त करके मुनि सोहनविजयजीने इस वर्षका चतुर्मास पालीताणा सिद्धाचल तीर्थभूमि में विराजमान मुनि श्री हंसविजयजी महाराज की सेवामें रहकर व्यतीत किया,
आज्ञा गुरुणां ह्यनुपालनीया ।
दीक्षानन्तर विहार और चातुर्मास । मृगमीनसज्जनानां, तृणजलसन्तोषविहितवृत्तीनाम् । लुब्धकधीवरपिशुना निष्कारणवैरिणो जगति ॥१॥
तृण-जलसे निर्वाह करनेवाले मृग-मच्छली-और संतोषसे निर्वाह करनेवाले महात्माओंके शिकारी-धीवर और चुगलखोर-निष्कारण जगतमें वैरी होते हैं।
यद्यपि पूज्यपाद श्री तपस्वीजी महाराज की इच्छाथी कि ये सब मुनिराज और विशेष कर श्रीललितविजयजी तथा नवीन मुनि सोहनविजयजी यहाँ ही चातुर्मास करें। परन्तु दोनों मुनियों की ज्ञानाभ्यास पर तीव्र इच्छाथी । वे ज्यों त्यों उनकी आज्ञा संपादन कर वहां से चल पड़े।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com