________________
(१४) ही दसाड़ा गाँवमें विराजमान हैं। मुझे आज्ञा हो तो मैं वहाँ जा आऊँ । पूज्य मुनिमहाराजने आज्ञा दी, आप दसाड़े पधारे। आप अपने उपकारी काका गुरुके चरणों में वंदन कर कृतकृत्य हुए । कुछ दिन वहाँ ठहरे। पूज्य तपस्त्रीजी महाराज श्रीशुभविजयजी को जब वसन्तामलजी की दीक्षा के समाचार मालूम हुए तो उन्होंने बड़ी खुशीसे श्रीसंघ दसाड़ा को यह शुभ समाचार सुनाए ।
बस, फिर कहनाही क्या था; उन सबने तपस्वीजी महाराजके चरण पकड़े और अर्ज की कि इतने दीर्घ समयके बाद आप अपनी जन्मभूमि में पधारे हैं तो यह सत्कार्य आपश्रीजी के हाथसे यहाँ ही होना चाहिये । उधर पूज्यपाद श्रीहंसविजयजी महाराज की भी आज्ञा अलंध्य थी । मुनिश्री ललितविजयजी के लिये दोनों ही महापुरुषों की आज्ञा शिरसा वंद्य थी । विशेषता इतनी ही थी कि तपस्वीजी महाराज की जन्मभूमि दसाड़ा ग्राम था; वहाँ के श्रीसंघको तपस्वीजी महाराज के दर्शनों का दीक्षा दिनके बाद १६ वर्षों से यह पहला ही लाभ हुआ था । इसलिये उन लोगोंने मांडल जाकर श्रीहंसविजयजी महाराज से इस लाभ की याचना की और यह भी कहा कि मांडल जैसे बड़ी बस्ती के गाँवों को ऐसा लाभ और आप जैसे उत्तम पुरुषों का समागम बहुत दफा होगा, आगे आप मालिक हैं।
परम पूज्य दयालुने आज्ञा दि कि जाओ, तुम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com