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(१३) मुनिश्री ललितविजयजीने उन्हें जीवविचार, नवतत्व, दंडक प्रकरण आदि पढ़ाना शुरू किया। वसन्तामलजी की स्मरणशक्ति बहुत उत्तम थी सिर्फ इतनी ही कठिनता थी कि वे संयुक्त अक्षरों का उच्चारण बहुत मुश्किल से कर सकतेथे । आगे जाकर उन्होंने जब व्याकरण पढ़ना शुरू किया तो "स्तोः श्चुभिः श्चुः" "न शशात् खपः” ऐसे ऐसे सूत्रोंका शुद्ध उच्चारण कराते मुनिश्री ललितविजयजी को १५, १५ दिन महनत उठानी पड़ी । इसका कारण सिर्फ यही था कि उनका बालकाल संस्कृत के अध्ययन से शून्य रहा था ।
भोयणी से विहारकरके पूज्य महाराज हंसविजयजी मांडल पधारे तो सकल संघने बड़ी ही भक्ति दिखाई । एक दिन व्याख्यान देते हुए आपने वसन्तामलजी की दीक्षा मांडल में कराने का विचार प्रकट किया ।
पज्य मुनिराजश्री हंसविजयजी महाराजने इस विषय का मुनिश्री ललितविजयजीसे विचार किया और फरमाया कि इस पुण्यात्माकी दीक्षा अगर यहां कराई जाय तो लोग समृद्ध हैं, उत्साही हैं, जिनशासन की उन्नति अच्छी होगी । मुनिश्री ललितविजयजीने नम्रता पूर्वक हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, कि आप कृपालुका फरमान सत्य है; अगर यहां दीक्षा हो तो जिनशासन की शोभा में जरूर वृद्धि होगी, मगर मेरे आप जैसे ही उपकारी श्री शुभविजयजी महाराज तपस्वी पास में
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