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(१२) के नामपर पत्र लिखकर वसन्तामलजी को पाटन की तर्फ जानेकी अनुज्ञा फरमाई । धर्मधुरीण लाला गंगारामजीने मार्गव्यय देकर उनको पाटन पहुंचाया। वहाँ पूज्यपाद प्रवर्तक स्थविर १०८ श्री श्री कान्तिविजयजी महाराज विराजमान थे। उनके दर्शनोंसे मुमुक्षुजी का रोम रोम प्रसन्न हुआ। पाटनके जिनचैत्यों की अपूर्व यात्रा करके उन्होंने अपने जन्मको कृतार्थ माना । वहाँसे वसन्तामलजी को यह मालूम हुआ कि मुनिश्री ललितविजयजी महाराज यहां नहीं है, वे आजकल परम पूज्य शांतमूर्ति xश्री हंसविजयजी महाराज के पास भोयगी. तीर्थपर विराजमान हैं।
वसन्तामलजी तुरत भोयणी पहुँचे । परमपूज्य श्री हंसविजयजी महाराज के दर्शनों के साथ मुनिश्री ललितविजयजी के दर्शनकर निहायत खुश हुए। इसके अतिरिक्त जगत् प्रसिद्ध भोयणीतीर्थ में विराजमानश्री मल्लीनाथ भगवान के दर्शनकर परम कृतार्थ हुए। ऐसे २ अपूर्व अति दुर्लभ तीर्थों की यात्रा करके मुमुक्षु वसन्तामल जी अपने जीवनको सफल मानने लगे । और अपनी कायाका पलटा समझने लगे।
___x आप स्वर्गीय आचार्य श्रीविजयानन्दसूरि उर्फ आत्मारामजी महाराजके प्रशिष्यरत्न और साधुताके सच्चे आदर्श थे । आप शान्ति के देवता और त्यागकी जीती जागती मूर्ति थे । दुःख है कि सं० १९९१ गुजराती १९९०; के फाल्गुन शुक्ला दशमी के दिन आपका स्वर्गवास
हो गया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com