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(८) (आत्मारामजी) महाराज के प्रशिष्यरत्न मुनिराज श्री वल्लभविजयजी महाराज के श्री चरणों में अम्बाला पहुंचे । मुनिश्री के चरणों में पहुंचकर वसन्तामलजीने अपनी सारी आत्मकथा, दीक्षा ग्रहण और उसका त्याग सब यथावत् रूपसे उनके सामने रखदिया।
आचार्य श्रीविजयवल्लभसूरिजी महाराजने उन्हें सान्त्वना के साथ समझाया कि साधुव्रत पालन करना असि धारापर चलना है, जिनकी उग्र क्षमता एवं सहनशीलता तथा तीव्र वैराग्य तत्परता होवे वही इस मार्ग में पैर रख सकता है अन्यथा नहीं। तुम में अभीतक वह वैराग्य नहीं मालूम देता। इस प्रकार मुनिश्रीने स्पष्ट कह दिया ।
* आप भारतवर्ष के एक सुविख्यात जैन मुनि हैं । इस समय आप आचार्यपदको सुशोभित करते हुए श्रीविजयवल्लभसूरि के नामसे सुप्रसिद्ध हैं । स्वर्गवासी आचार्यश्री १००८ विजयानन्दसूरिजीके आप वर्तमान पट्टधर हैं । आपश्रीकी साधुचर्या, सत्यनिष्ठा और धर्म परायणता सर्वथा वन्दनीय है । जैनसमाज के सामाजिक और धार्मिक अभ्युदय के लिये आपने आजतक जो कुछभी किया है वह अपनी शानमें अद्वितीय है । बम्बई के श्रीमहावीर जैन विद्यालय, मारवाड के श्री पार्श्वनाथ जैनविद्यालय और पंजाब के श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल आदि शिक्षण संस्थाओं की प्रतिष्ठा का श्रेय आपश्रीको ही है। आप जैसे असाधारण साधुओं के लिये जैनसमाज जितना भी गर्व कर सके उतना ही कम है। सं. १९९० में श्रीबामणबाड़ (मारवाड़) तीर्थ में श्रीपोरवाल सम्मेलन की ओरसे आचार्यश्रीजी को “ अज्ञानतिमिर
तरणि कलिकाल कल्पतरु"-पदवियोंसे विभूषित किया गया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com