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(६) के अनुसार वसन्तामल जी को अपने माता-पिता के सुखका अधिक समय तक सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। इतनी छोटी अवस्था में ही माता-पिता के स्वर्गवास हो जाने पर वे कुछ दिन “जंडियाला गुरु" में अपनी ज्येष्ठ भगिनी वसन्ती देवी के पास रहे।
अपने बहनोई गोकुलचन्दजी के पास रह कर (जो कि स्टेशन मास्टर थे) आपने इंग्लिश का अच्छा अभ्यास किया। हिन्दी, उर्दू का अभ्यास अकथनीय था ही, आप अपनी प्रबल धारणा शक्ति के कारण थोड़े ही दिनों में हिन्दी, उर्दू
और अंग्रेजी के अच्छे विद्वान हो गये । कुछ समय तक आप तार मास्टर के तौर पर सरकारी कर्मचारी भी रहे ।
स्थानकवासी दीक्षा और उसका त्याग ।
पूर्व जन्म के किसी पुण्य कर्म के प्रभाव से वसन्तामल जी का चित्त युवावस्था में (२२ वर्ष की आयु में) ही संसार से विरक्त हो गया था । उन को गृहस्थाश्रम में रहना किसी प्रकार भी रुचिकर नहीं होता था । वे सोचा करते थे
जन्मैव व्यर्थतां नीतं भवभोगप्रलोभिना । काचमूल्येन विक्रीतो हन्त ! चिन्तामणिमया ॥
इस प्रकार प्रति दिन सोचते २ एक दिन उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि:
अशीमहि वयं भिक्षामाशावासो वसीमहि ।
शयीमहि महीपृष्ठे कुर्वीमहि किमीश्वरै ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com