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भावार्थ-लोकोंको भली प्रकार से पार उतारने में विशाल समर्थ श्रेष्ठ पुल के समान कोइ पूज्य पुरुष जब कभी संसार में जन्म लेता है, तभी सर्वत्र सूर्य हसता है, “ देदी'प्यमान होता है । और चंद्रमा परमामृत को वर्षाने के लिए पूर्णता को प्राप्त होता है।"
हमारे चरित नायक उपाध्याय श्री सोहन विजयजी का जन्म विक्रम संवत् १९३८ माघ शुक्ला तृतीया को काश्मीर की सुप्रसिद्ध राजधानी जम्मू में हुआ। आप के पिता का नाम निहालचन्द और माता का नाम उत्तमदेवी था। आप जाति के दुगड़ गोत्रीय वीसा ओसवाल थे । आप के गृहस्थाश्रम का प्रसिद्ध नाम " वसन्तामल" था । बाल्यकाल ही में आप के ललाट तट पर अङ्कित भावी रेखाएँ सूचित करती थीं कि यह लड़का बड़ाही होनहार निकलेगा; क्योंकि " होनहार विरवान के होत चीकने पात” के अनुसार आप बालकपन में ही प्रतिभाशाली एवं अदम्य उत्साही थे । आपने बाल्यावस्था ही में अच्छा विद्योपार्जन करके बुद्धि वैचित्र्य का चित्र संसार के सामने खींच कर रख छोड़ा था। आपकी प्रतिभा-चातुरी को देखकर लोग दंग रह जाते थे। माता-पिता मन ही मन अपने को धन्य २ मान कर फूले नहीं समाते थे; परन्तु
अनहोनी के होन को, ताकत है सब कोय ।
अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com