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(४) "श्री आत्मानंद जैन महासभा पंजाब"से पंजाबके जैन समाजका जो उपकार हुआ है इसका एक मात्र श्रेय इन्हीं महात्माको है। आप समाजको संगठित और एक ही प्रेम सूत्र में बन्धा हुआ देखना चाहते थे । समाजको रसातलमें पहुँचानेवाले मिथ्या संस्कारोंकी दासतासे समाजको मुक्त करने के लिए आपने अपने जीवनको भी न्यौछावर कर दिया। धर्मकी उन्नतिसे समाजके संशोधनको आपने मुख्य स्थान दिया।
आप पूरे धर्मात्मा, सच्चे त्यागी और स्वतंत्रता के प्रगाढ़ प्रेमी थे । लोकसेवा, लोकहितभावना, आत्मशुद्धि और धर्म निष्ठा आप के जीवन के मुख्य अंग थे । अधिक क्या कहें ? आप जैसे उदार विचार रखने वाले महात्माओं की संख्या संसारमें बहुत कम है। आप के सतत वियोग से जनता और विशेष कर जैन समाज को जो क्षति पहुँची है उसकी पूर्ति यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। जननी जने तो भक्त जन, गुणि जन दाता शूर । नातर जननी बांझ रहे, मत खोवे तूं नूर ॥
वंश जन्म और शिक्षा आदि हसति सकललोकालोकसर्गायभानुः,
परमममृतवृष्ट्यै पूर्णतामेति चन्द्रः । इषति जगति पूज्यं जन्म गृह्णाति कश्चित् ,
विपुलकुशलसेतुलोकसंतारणाय ।।
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