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का श्रेय लेते हैं । आशा है पाठक गण इस से अवश्य लाभ उठाकर अपने जीवन को उच्च बनाने में प्रयत्नशील होंगे।
(विशिष्ट गुण) शरीरस्य गुणानां च, दूरमत्यन्तमन्तरम् । शरीरं क्षणविध्वंसि, कल्पान्तस्थायिनो गुणाः ।।
भावार्थ--शरीर और गुणों का अति दूर का अन्तर है शरीर क्षण में नष्ट होने वाला है और गुण सदा के लिए कायम रहने वाले हैं। जिसको न निज गौरव तथा-निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं नर पशु निरा है, और मृतक समान है ॥ ___स्वर्गीय उपाध्याय श्री सोहनविजयजी महाराज साधुता के आदर्श की सजीव मूर्ति थे। उनकी आदर्श गुरुभक्ति, प्रगाढ़ संयम निष्ठा और विशिष्ट धर्माभिरुचि अपनी शानमें निराली थी । उनका जीवन त्यागमय होने के साथ २ देश, जाति, समाज और धर्मकी उन्नति के लिये विशेष रूपसे प्रयत्नशील रहा था । देश और जाति के अभ्युदय के लिये उनके हृदयमें जो भावना थी, समाज के अभ्युत्थान के निमित्त उनके दिलमें जो दर्द था उसकी हृदयमें कल्पना करते हुए मस्तक श्रद्धासे उनके चरणोंकी और झुक जाता है । अस्तु ।
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