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( २०५) उपाध्यायजी महाराज का पहला पत्र ।
वंदे वीरमानंदम् ।
गुजरानवाला वदि १० शुक्रवार. धर्म बन्धु ! लघु की वंदना स्वीकार करियेगा। धन्यधन्य है आपको, जो सूरीश्वरजी के वचनों का प्रतिपालन कर रहे हैं. बस यही गुण मैंने आप में देखा । जैसी आप आचार्य भगवान् की आज्ञा पालन करते हैं, वैसी अगर मैं भी करूं तो बस मेरा बेड़ा पार हो जाय। शासनदेव से यही प्रार्थना है कि मुझे भवभव में सूरीश्वरजी की सेवा नसीब हो जैसी कि आप कर रहे हैं । आप में मैंने क्या देखा है, बस कह नहीं सकता क्योंकि मैं तो आपकी ही माला फेरता हूं। आपने जो कार्य किया, वह दूसरों से नहीं होने वाला ।
उपाध्यायजी महाराज का दूसरा पत्र ।
वंदे वीरमानंदम् ।
____गुजरानवाला शुदि १५ मंगलवार से. की वंदना. माला पहुंच गई. आज श्रीजी के तेला है. कल को पारणा होगा. धर्म बन्धु ! मेरा बड़ा ही पाप का उदय है जो कि श्रीजी की छत्रछाया में रहते हुए भी कुछ
भी भक्ति नहीं हो सकती. पांच मास से खांसी पीछे लगी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com