________________
( २०४ )
हलका हो गया, फिर भी जब उनके स्वभाव की याद आती है और उनकी स्मृति आखड़ी होती है, हृदय व्यग्र हो जाता है।
____ इसके आगे कुछ उपयोगी पत्र दिये जाते हैं। :१००८ पूज्यपाद श्री आचार्यदेव का कृपा पत्र
त्रयोदशी शनिवार. वंदनानुवंदना सुख साता अष्टमी और नवमी तथा दशमी के तीन पत्र मिले वृत्तांत ज्ञात हुआ । जवाब क्या लिखना अभी नहीं सूझता और नाहीं कुछ प्रयोजन है । उपाध्यायजी की तबियत का कुछ भरोसा नहीं ज्ञानी ने देखा होगा और आयुष्य लंबा हुआ तो मिल लेवेंगे वरना इस पत्र से वारंवार वंदना और खमत खामणा के साथ कहते है, मेरा अधूरा रहा काम आपको पूरा करना होगा । तुम्हारा एक पत्र प्रथम आया था, उसका जवाब उन्होने लिख रखा था, बाद में बीमार पड़ गये। आज कागजों में हाथ आया सो यादगार तरीके भेजा जाता है, बाकी तो राजी हो कर जो कुछ लिखना होगा स्वयं लिखेंगे । हाल तो इस पत्रिका को अंतिम पत्रिका समझ इसे संभालकर रख लेनी । पुनः वंदना वारंवार हाथ जोड़ कर करते हैं, बस राजी होने पर आपको आ मिलूंगा कहते हैं। अब पत्र नहीं लिखने का होंसला। इतने में बहुत समज्ञ लेना । शांतिः ३
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com