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( २०२) कई वर्ष बीत जाने पर भी वे उसे इस काम में दे न सके थे। उन्होंने प्रार्थना की कि यदि आप ८ दिन ठहरें तो यह अस्सी हज़ार का मकान लोक हित के लिए दे दूं। उनकी प्रार्थना पर ध्यान देकर हम वहाँ ठहर गए । सेनीटोरीयम का निश्चय हो गया । उस निमित्त का उत्सव भी शुरू हो यगा। रोजाना पूजा पढ़ाई जाने लगी । इनमें रोज़ कई हज़ार आदमी इकट्ठा होते थे । उस प्रसंग पर सेठ डाह्याभाई गेलाभाई की ओर से सब लोगों को स्वामिवात्सल्य कराया जाता था । इस उत्सव महोत्सव में मेरा दिल कुछ बहल गया।
यह शुभ कार्य ता. २३-११-१९२५ को संपूर्ण हुआ। इस शुभ काम के समाप्त होने पर जब हम विहार की तैयारी करते थे अंधेरी से सेठ भोगीलाल लहरचन्द आये। उन्होंने प्रार्थना की कि हमने लगभग २० हजार रुपया लगाकर सड़क पर मकान तैयार कराया है। उसकी वास्तु-पूजा-क्रिया आपकी मौजूदगी में करना चाहते हैं । मार्गशीर्ष शुद १० को हम वहाँ पहुँचे । बम्बई की जैन जनता खूब आई; पूजा पढ़ाई गई । मौन एकादशी के पोसह उसी मकान में हुए। वहां से हम सूरत वड़ौदा की तरफ़ होते हुए अहमदावाद आये ।
अहमदावाद के रहने वाले सेठ वाड़ीलाल साराभाई मुझ से मोहनलाल मोतीचन्द के बंगले में बम्बई में मिले थे।
उन्होंने वड़ी हार्दिक इच्छा से यह कहा था कि मैं श्री महावीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com