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( २००) परस्पर के प्रेम तरु का खूब सिंचन किया । मेरे विहार के वक्त उपाध्यायजी जालंधर की छावनी तक साथ आये । यद्यपि विधाताने उनका और मेरा शरीर भिन्न बना दिया था, किन्तु आत्मा एक थी। * तुमको हमारी चाह हो, हमको तुम्हारी चाह हो।"
यह हमारी मानसिक इच्छा थी। इसी लिए मुझसे मिलना चाहते थे, परंतु टूटी की बूटी नहीं है।
वे गुजरानवाला में बीमार थे, मैं खार से विहार कर के शान्ताक्रुज आया था । दानवीर सेठ विट्ठलदास ठाकुरदास जो कल शान्ताक्रुज आनेका वादा कर गये थे, आए। आते हुए उस सजनने अपने घरके टेलीफोन पर एक आदमी बैठा दिया था और कह दिया था कि शान्ताक्रुज से मैं जो कुछ टेलीफोन पर कहूँ, उस समाचार को अर्जण्ट तारद्वारा गुजरानवाला भेज दें।
शान्ताक्रुज मुझसे मिलने के बाद यह निश्चय हुआ कि उपाध्यायजी को इस आशय का तार कराया जाय कि आप बिल्कुल बेफिक्र रहें, मैं आजन्म पंजाब गुरुकुल का निर्वाह करूंगा, किन्तु होनहार हो कर ही रहती है। सेठ जिस आदमी को टेलीफोन पर बैठा गए थे. वह कार्यवश कहीं चला गया। इधर समाचार कहलाने के वास्ते शांताक्रुज में टेलीफोन की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com