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( १९५ ) हुआ । वहाँ से लौट कर पंजाब गया और पंजाब से चलकर जयपुर आकर गुरु महाराज से मिला। जयपुर से साथ होकर गुजरात में गुरु महाराज के साथ ही रहा । गुरु महाराज के दो चौमासे बम्बई में श्री महावीर जैन विद्यालय की स्थापना के लिए हुए । मेरे वो दो चौमासे बीजापूर और म्हेसाणा ( गुजरात ) में हुए । म्हेसाणे का चौमासा उठने पर कुछ साधुओं के साथ श्री सिद्धाचलजी की यात्रा करके मैं सूरत में गुरु महाराज की सेवा में उपस्थित हुआ। उस समय मुझे बंबई जाने की आज्ञा मिलने पर मैं वहाँ पहुँचा । उस समय मेरे साथ मुनि श्री उमंगविजयजी आदि कई साधु थे।
बम्बई से लौटने के बाद पालीताणा में आकर गुरु महाराज के दर्शनों का लाभ मिला साथ ही इस काठियावाड़ की मुसाफरी में मुझे भी उपाध्यायजी महाराज से मिलने का फिर सौभाग्य प्राप्त हुआ। काठियावाड और गुजरात में कुछ वर्ष रह कर मारवाड़ में गुरु महाराज की सेवा में उपस्थित हुआ और गुरुदेव के प्रारंभ किये हुए शिक्षा प्रचार में जो कुछ बन सका कुछ अंश में उनकी आज्ञा का पालन करता रहा । श्री गुरुदेव के साथ मैं भी पंजाब गया। अम्बाला
और होशियारपुर दो वर्ष सेवा में रह कर वहां से श्री गुरुदेव की आज्ञानुसार मैं बम्बई पहुँचा । पंजाब से रवाना होते समय मेरे साथ प्रभाविजयजी थे । बम्बई के चातुर्मास में साथ में पं. उमंगविजयजी, मुनि नरेन्द्रविजयजी, श्री अमर
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