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( १९१ ) आगे चलकर पंजाबके लिए उपयोगी होगा"। मैंने उस पत्रको शिरोधार्य किया। श्री हंसविजयजी महाराज साहबको बँचाया उन दिनों चैत्र महीनेके आयंबिल की ओली चल रही थी। ओली के दिन वहां व्यतीत किए।
कुछ ही दिनों में वसंतामलने मेरे पास जीव विचार, नवतत्त्व वगैरह कण्ठस्थ कर लिया । प्रतिक्रमण शुद्ध करना आरम्भ कर दिया। श्री हंसविजयजी महाराज साहब के साथ हमने वहां से विहार किया और मांडल आये । पूज्य श्री हंसविजयजी महाराज साहबने श्री संघको वसंतामल की दीक्षा की बात सुनाई । संघका मन मयूर की तरह नाच उठा । उन्होंने श्री हंसविजयजी महाराज साहब की सेवामें आग्रहपूर्वक विनती की कि आप वसंतामल को यहां ही दीक्षा दें । मगर बात यह थी कि माण्डल के पास दशाढ़ा गांव में मेरे परमोपकारी ज्ञानदाता, मेरे पूज्य परमोपकारी चारित्रदाता गुरुदेवसे दूसरे नम्बर के उपकारी मुनिमहाराज श्री शुभविजयजी तपस्वीजी विराजमान थे जिन्होंने पंजाबसे गुजरात आने के बाद कई वर्षोंतक शास्त्र सिद्धान्तोंका मुझे अध्ययन कराया था और प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, लोकतत्त्वनिर्णय, तीन भाष्य, गुणस्थानकमारोह, तर्कसंग्रह, षट्दर्शन-समुच्चय, सम्यकत्वसप्तति आदि अनेक मूल ग्रन्थ कण्ठस्थ कराये थे।
उनके पास वन्दन करने के लिए मैं पहुंचा । वे महात्मा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com