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( १८७) पास में बिराजमान पूज्यपाद परम गुरुदेव श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजी महाराजके मुखारविंदसे निकलती हुई अर्हन् २ तथा चार सरणोंकी पवित्र ध्वनिको कर्णगोचर करते हुए हमारे उपाध्यायजी महाराज अंतिम श्वास लेकर अपनी उज्वलकीर्ति को छोड़ कर भक्तजनों के देखते ही ठीक डेढ बजे देवलोक को सिधारे।
पंजाब जैन समाजसे निवेदन । महानुभावो! गुरुदेव श्री उपाध्यायजी श्री सोहनविजय जी महाराजकी भावनायें सफल बनानेके लिए उनके स्वर्गवास वालेदिन स्वर्गस्थ पूज्यपाद न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्रीमद्विजयानंदसूरिजी महाराजके समाधि मंदिरमे दर्शनार्थ पधारकर वहां वैराग्यमय देशना देते हुए श्रीमद्विजयवल्लभसूरिजी महाराजने जो फरमाया था वह आपको याद ही होगा। कदाचित् विस्मरण हो गया हो तो लीजिए याद कीजिये ! यह शब्द हैं:-एक तो पंजाब गुरुकुल को उन्नत करना और दूसरे जाति-संगठन करना। यह दोनों भावनायें बतलाकर के फरमाया था कि इस बहादुरने अकेले ही इतनी हिंमत बांधी थी तो क्या तुम हम सब मिल करके भी इतनी हिंमत नहीं कर सकते !
महानुभावो, श्री परमगुरुदेवके फरमाये हुए इन वचनों को स्मरण करो एवं अपने हृदय पट्टपर पक्की सोनहरी अक्षरों
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