________________
(१८६) है। इधर उपाध्यायजी महाराज अपने हाथसे ही अपने हाथकी नाडी वारंवार देख रहे है, और हंसते चेहरे फरमाते है के सावधान रहना, आज मेरी नाडी ठिकाने नहीं है, ( अंत तक सेवा करनेवाले पासमें बैठे हुए अपने शिष्य समुद्रविजय, सागरविजयजीकी तरफ नजर करके) भाइयो ! आज तुम उपवास न करना । बस आज ही मैं मृत्युका बड़े हर्षसे स्वागत करूंगा, इत्यादि फरमाते हुए अपने दोनों शिष्योंको संबोधकर उनको अंतिम हित शिक्षा दी । समुद्र ! सागर ! पुत्रो ! तुमने मेरी जिस प्रकारसे सेवा की, उसकी मैं क्या प्रशंसा करूं । तुम्हारा कल्याण हो-भला हो । पुत्रो ! जैसे तुमने मेरी सेवा की है जैसे ही श्री गुरुदेव की करना । श्री गुरुदेव की आज्ञा में जैसे चल रहे हो वैसे ही चलते रहना, उनकी सेवा में रहना । पुत्रो ! अधिक क्या कहूं तुम खुद सुज्ञ हो, सबके साथ हिलमिलके चलना, आनंदमें रहना, इत्यादि हितशिक्षा देकर अर्हत् का स्मरण करने लगे ।
अंतिम श्वास ।
___ दो पहरका समय है, बारह बज गये, भक्तजनोंसे उपाश्रय भर गया, साधु-साध्वी भी पासमें आ बिराजे,
*नोट--कुल आयुष्य ४३ वर्ष ९ मास २५ दिन। संवेगी दीक्षा पर्याय २० वर्ष ६ मास १९ दिन ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com