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सत्संग आपी विश्वमां, वाणी विमल वर्षावती, सूरि अजितसागरना दिले, आनंदघन प्रगटावता. सोहन० ७ ले० अजितसागरसूरि.
( श्री आत्मानंद प्रकाश - पुस्तक २३ अंक पांचवेके टाइटल पेज ३ ।) इससे सुज्ञ पाठकोंको भलीभांति मालूम हो गया कि उक्त सूरिजी महाराजका अपने उपाध्यायजी महाराजके प्रति कैसा गाढस्नेह - सद्भाव था ।
शिष्यों को हितशिक्षा ।
आज कृष्णा चतुर्दशीका दिन है सचमुच यह अपना भाव सूचित किए विना न रहेगी ।
प्रात:काल है ! घंटोंके नादसे प्रभुमंदिर गूंज रहा है मानों घंटोका नाद प्रभु दर्शनार्थ आगन्तुक भाविकोंको पुकार २ करके चेतावनी दे रहा है कि हे भाविको ! इस देवाधिदेव वीतराग प्रभुकी उपासना ( सेवाभक्ति ) करके अपने इस क्षणभंगुर देहको सफल करो, आत्मकल्याण करके मुक्ति पंथकी तरफ प्रयाण करो ।
प्रभुदर्शन करके अनेक भाविक लोग श्री गुरुदेवको बंदनार्थ उपाश्रयमें आ रहे हैं, वंदन नमस्कार करके, सुखसाता पूछ रहे हैं ! परंतु आज इन भाविकोंमें आनंद - उत्साह नजर - नहीं आता, सब नरनारीयोंके मुखपर उदासीनता छा रही
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