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सरलता।
श्री उपाध्यायजी महाराजमें सरलताका भी एक बड़ाभारी गुण था । किसी समय किसीके साथ कुछ कहने सुनने का प्रसंग उपस्थित हो जाता तो आप अपनी सरल प्रकृतिके अनुसार शीघ्रही खमतखामणे-क्षमाप्रार्थना-करलेते थे।
अंत समयके कुछ समय पहले जब आपको मालूम हुआ कि अब मैं बच नही सकंगा, तब सबके साथ खमतखामणे किये और आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयकमलसूरिजी साहिब प्रवर्तकजी महाराज श्री कांतिविजयजी तथा शांतमूर्ति श्री हंसविजयजी महाराज आदि मुनि महात्माओं को अपनी तरफसे खमतखामणेके पत्र श्री गुरुदेवकी मारफत लिखवाये। आपके शुद्ध हृदय तथा भद्रिकताके प्रतापसे गृहस्थ तो क्या कई मुनिमहात्मा भी आपके गुणानुरागी बनजाते थे। वि. सं. १९६९ के वर्ष में श्री गुरुदेवकी आज्ञासे उपाध्यायजी महाराज श्रीसिद्धाचलजी तीर्थ की यात्रार्थ पधार रहेथे । तब काठियावाडके राणकपुर नामक प्राममें योगनिष्ठ विद्वद्वर्य जैनाचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी महाराजके पट्टधर आचार्य श्रीमद् अजितसागरसूरिजी महाराजसे आपका मिलाप हुआ । केवल एकदिन ही साथमें रहने का प्रसंग प्राप्त हुआ था । परंतु आपके साथ धार्मिक वार्तालाप करके वे बहुत ही संतुष्ट हुए और आपके गुणानुरागी बन गये। फिर कभी भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com