________________ ( 181 ) उनमें मुलतान शहरके भी सज्जन थे। उन्होंने उपाध्यायजी महाराजसे मुलतान पधारने की जोरदार प्रार्थना की। इसवक्त आप नवपदकी आराधनाके निमित्त मौन धारण किए हुए थे अत: आपने कागज पर लिखकर अपने विचारोंको प्रगट किया कि मेरा विचार सिंध-कराची की तरफ जाने का है, कराचीवालों के कई वर्षोंसे प्रार्थना पत्र आ रहे हैं / उस प्रदेशमें साधुओंके विचरने की अत्यंत आवश्यक्ता है, क्योंकि वहां लोग अत्यधिक संख्यामें मांसाहारी हैं; उन लोगों के लिए तो जीवोंका वध करना शाकभाजी काटना जैसा ही है। इस लिए उसतरफ अहिंसा धर्मके प्रचारकी एवं उन लोगोंके कठोर हृदयोंमें दया के भाव कूटकूट कर भरनेकी अत्यंत जरुरत है। अतः उस ओर मेरा खास लक्ष्य है। उधर जाते हुए मुलतान शहर होकर के ही जानेका भाव है (आगे ज्ञानी गम्य है)। इससे विदित होता है कि हमारे चरित्रनायकके हृदयमें ऐसे अनार्य देशोंमें भी सुधारकी एवं वहाँकी जनतामें दयाभाव फैलाने की कैसी धुन लगी हुई थी। परंतु खेद !! महानखेद ! है कि कुदरतने यह समय ही न आने दिया। यदि गुरुदेव श्री उपाध्यायजी महाराज का आयुष्य दीर्घ होता तो वे संसारको दिखा देते कि ऐसे 2 अनार्य देशोमें भी जैन साधु किस प्रकार दया धर्मका प्रचार करते हैं / समय की बलिहारी ! लायक मनुष्योकी सब स्थानों में जरूरत होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com