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( १८३) मिलनेका प्रसंग उपस्थित न हुआ किन्तु उक्त सूरिजीके हृदय में आपने स्थान प्राप्त कर लिया था। जब उपाध्यायजी के स्वर्गवासके समाचार उक्त सूरिजी श्री आचार्य अजितसागरसूरिजी महाराजके पास पहुंचे तो उनको बड़ा खेद हुआ, बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने अपने खेदको प्रगट करनेके लिए आपकी स्तुति (प्रशंसा)में दो गजलें बनाकर श्री आत्मानंद प्रकाश भावनगर में प्रकाशित करवाई थी सो यहां उद्धृत की जाती हैं।
स्नेहांजलि।
नाथ कैसे गजको बंध छुडायो-ए राग । सोहनमुनि स्वर्गमां अद्य सिधाव्या,
एवा भविकना मन भाव्या. सोहन० टेक० स्नेह सुखावह सांभरी आवे, त्यां नयनमां अश्रु वहाव्यां। उपदेश अमृत आपी जगतमां, वैराग्यना बीज वाव्यां. सो० १ काम अनेक कराव्यां मनोहर, ज्ञानमां नाणा खपाव्यां। निर्मल आनंदचित्धन देशे, क्लेशना मूल कपाव्यां. सो० २ सद्गुरु वल्लभसूरिना चरण, सोहन नाम धराव्यां। जैन समाजनी उन्नति करवा, विद्याना स्थान स्थपाव्यां.सो०३ कोमल चित्त सदा मुनि आपनु, अनुभव तरु उपजाव्यां, । अंतरमाही वसेल अनादिना, अज्ञान सैन्य हराव्यां. सो० ४
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