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( १७७ ) उठा रहे थे, उन स्वर्गीय गुरुदेव उपाध्याय श्री सोहनविजयजी महाराजका जीवनचरित्र आदर्शोपाध्याय के नामसे आपके समक्ष रखा गया है । आशा है कि जिस उत्साह से आप इसको चाहते थे उससे कई गुने अधिक उत्साहसे, पढ़नेसे आपको मालूम हुआ होगा कि हमारे उपाध्यायजी महाराज सचमुच एक आदर्श उपाध्याय ही थे, जिन्होंने जैन धर्मकी उन्नति करने के लिए, जैन धर्मका गौरव बढाने के लिए, जैन धर्मके सत्यसिद्धांतो के प्रचारके लिए न दिन देखा न रात; न गरमी की परवाह की और न सरदी की, न भूख की परवाह की और न प्यास की। आप केवल इन कार्यों में ही निर्भयता से डटे रहते थे। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या ब्राह्मण क्या क्षत्रिय, क्या राजा, क्या रंक जो कोई एक बार आप के समागममें आजाता, आपका प्रभावशाली व्याख्यान सुन जाता वह प्रायः आपका भक्त ही बन जाता। हिन्दू-मुसलमान, सबने मिलकर आपके गुण गाये; कसाइयों तकने भी बड़े आदरभाव से मानपत्र समर्पण करके श्रद्धाके फूलोंसे आपका सन्मान किया। उपाध्यायजी महाराजके स्वर्गवाससे केवल जैन समाजको ही हानि नहीं हुई है प्रत्युत अजैन समाजको भी बड़ी भारी क्षति पहुंची है, अभीतक वे लोग (अजैन लोग) ' सोहनबाबाकी तो तो क्या बात है' इस तरहसे कहकर खेद प्रकट करते रहते हैं।
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